Thursday, June 10, 2010

क्षीर नीर का ज्ञानी हंसा

सपनो में खोया जग सारा
जागे कौन जगाये कौन

मै मेरा सुख ने तो सारी
सीमाओं को तोडा है
और समय ऐसा निर्मोही
कहीं न कुछ भी छोड़ा है

भौतिक सुख की एक धुरी पर
सबका जीवन घूम रहा
ऐसे में चुप रहना अच्छा
किसे कहाँ समझाए कौन

यही देश है क्या जिसको
सोने की चिड़िया कहते थे
चौथेपन में राजा भी
सन्यासी बन कर रहते थे

छोटा जीवन आशाओं की
बेल दूर तक फ़ैल रही
यह संकेत नहीं शुभ फिर भी
अच्छा बुरा बताये कौन

महाभोज की पंगत में
कौवों गिद्धों की दावत है
क्षीर नीर का ज्ञानी हंसा
होता प्रतिपल आहत है

यही विसंगति देश और मिट्टी
से नाता तोड़ रही
मरुथल के प्यासे हिरना को
जल प्रवाह दिखलाये कौन


सपनो में खोया जग सारा 
जागे कौन जगाये कौन

1 comment:

  1. Bahut achha laga apki kavitayain padkar. Kya apne kuch romanchak, updesh aur josh se bhari kavitayian bhi likhi hain. Agar apki lekhni udas hai to use khushi aur aane wala sansar sundar kaise bataiya

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