Sunday, June 27, 2010

लौट कर आ पाएंगे क्या फिर सुनहरे दिन

लौट कर आ पाएंगे
क्या फिर सुनहरे दिन

रेत को भी थपथपा
जब घर बनायेंगे
धूप अक्षत फूल से
उसको सजायेंगे

और फिर मकरंद की ले रेशमी डोरी
बांध लेंगे गुनगुनाती रागनी की धुन

लौट कर आ पाएंगे
क्या फिर सुनहरे दिन

प्रात की स्वर्णिम किरण
आह्लाद लाएगी
धूप खिलते फूल सी
मन को लुभाएगी

साँझ फिर ठहरे हुए संवाद को लेकर 
कान में लोरी सुनाये बिन रुके पल छिन

लौट कर आ पाएंगे
क्या फिर सुनहरे दिन

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