Sunday, June 27, 2010

और फिर भी हम नहीं रोये

और फिर भी हम नहीं रोये

दे चुके संत्रास बादल
लौट अपने घर गए
इन्द्रधनुषी रंग लेकर
कुछ गगन से कह गए

प्रलय पावक दाह बिजली
द्वार तक आये सभी
किन्तु हमने आँख के
मोती नहीं खोये

और फिर भी हम नहीं रोये

हम न थे पत्थर समय
साक्षी रहा हर मोड़ पर
टूटकर बिखरे नहीं बस
बात अपनी छोड़कर

कौन अपना बन सके
इस बात को लेकर
आज तक हमने किसी के
पग नहीं धोये

और फिर भी हम नहीं रोये

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