और फिर भी हम नहीं रोये
दे चुके संत्रास बादल
लौट अपने घर गए
इन्द्रधनुषी रंग लेकर
कुछ गगन से कह गए
प्रलय पावक दाह बिजली
द्वार तक आये सभी
किन्तु हमने आँख के
मोती नहीं खोये
और फिर भी हम नहीं रोये
हम न थे पत्थर समय
साक्षी रहा हर मोड़ पर
टूटकर बिखरे नहीं बस
बात अपनी छोड़कर
कौन अपना बन सके
इस बात को लेकर
आज तक हमने किसी के
पग नहीं धोये
और फिर भी हम नहीं रोये
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