Saturday, June 5, 2010

बेगाने भी मीत

आंसू बन कर स्वप्न बहे कुछ
कुछ आकुल हो गीत हो गए

मन सरसिज की पंखुरियो पर
सुख दुःख अब तक ठहर न पाए
कितना पंकिल रहे सरोवर
लहरों ने भी जाल बिछाए

पर जीवन की लय गति मिलकर
जाने कब संगीत बन गए

आंसू बन कर स्वप्न बहे कुछ
कुछ आकुल हो गीत हो गए 

अपना तरकश तीर लिए सब
आर पार की बात कर रहे
मीठी मधुमिश्रित वाणी से 
अपने बन कर नित्य छल रहे 

इसी अनोखी दुरभिसंधि में
बेगाने भी मीत बन गए 
आंसू बन कर स्वप्न बहे कुछ
कुछ आकुल हो गीत हो गए 

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