Thursday, June 10, 2010

छालो की सौगात

पाती में लिखकर भेजी क्यों
तुमने जग की करुण कहानी
एक तुम्हारा हस्ताक्षर ही
दर्पण सा सब कुछ कह देता

ओस भरी पंखुरियों पर जब,
पहली किरण विहंसती आई
भीगी पलकों के सपनो में
सुरभि कोष की हुयी विदाई

यही एक क्षण अनजाने ही
युग युग की गाथा कह देता

एक तुम्हारा हस्ताक्षर ही 
दर्पण सा सब कुछ कह देता

धुआं धुआं बदल बिजली से
जल जाने की बात न कहते
अंगारों पे चलने वाले
छालो की सौगात न सहते

समय बिखरते तिनको से भी
सुन्दर नीड़ सृजित कर देता
एक तुम्हारा हस्ताक्षर ही 
दर्पण सा सब कुछ कह देता

कृपन बुद्धि को लिखकर भेजी
बात कौन समझा पायेगा
इनका उसर बंजर मन क्या
हरियाली को सह पायेगा

यह तो बस इतना समझेंगे
कौन इन्हें है कितना देता
एक तुम्हारा हस्ताक्षर ही 
दर्पण सा सब कुछ कह देता

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