प्रेरणा के स्नेह के सम्बन्ध सपने हो गए
थाम कर अंगुली बढ़ाये
पग कभी जिसने
हो गया सक्षम गले
तक हाथ उसका आ गया
फूल के मकरंद में
कैसी कलुषता भर गयी
तितलियों के होठ पर
छूते पसीना आ गया
बांसुरी के मधुर स्वर की चह में
वेणुवन में हम उलझ कर राह गए
प्रेरणा के स्नेह के सम्बन्ध सपने हो गए
शांत गहरी झील में
पत्थर न फेको इस तरह
सैकड़ो घेरे सवालो के
खड़े हो जायेंगे
मनुजता का क्षरण आँखे बंद हैं
जाग कर भी यो लगा सब सो गए
प्रेरणा के स्नेह के सम्बन्ध सपने हो गए
No comments:
Post a Comment