Saturday, June 5, 2010

समय को तो बीतना है

समय का क्या समय को तो बीतना है

सुखद से दो पल
हवा में उड़ न जाये
और फिर दुःख
दाह में हम घिर न जाये

इस लिए हम
नित नए विधान रचते
भागते पल को
पकड़ने को ललकते

पर समय तो वीतरागी है चिरंतन
इसे तो हर एक क्षण में रीतना है
समय का क्या समय को तो बीतना है

बीतता हर पल यहाँ
इतिहास बनता
रत दिन का खेल
बनता है बिगड़ता

यह रुके तो यहीं
जन जीवन रुकेगा
कौन आशावान हो कर
जी सकेगा

बुलबुले हम हो भले ही समय सागर के
पर हमे तो भंवर में भी जूझना है जितना है
समय का क्या समय को तो बीतना है

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