स्नेह के कुञ्जवन झुलसकर रह गए
कुछ तो अनहोनी हुयी
धरती आकाश में
कहीं तो छूटा कुछ
दोनों की आस में
आओ कजरारे
मेघो से बोल दे
कहने और सहने की
सीमाएं तोल दे
और अनुबंध ऐसा बादलों पर आंक दे
कोई न कहे हम मौन रहे सह गए
देने वाले का
यशगान बहुत होता है
लेने वाले का मान
मन ही मन रोता है
ऐसे ही कितने लोग
दाह में जले हैं
हर एक मन में यहाँ
जंगल पले हैं
सोये जागे से किंशुक कचनार सभी
पवन तरंगो में अनचाहे बह गए
बादल बरसकर ऐसा क्या कह गए
स्नेह के कुञ्जवन झुलसकर रह गए
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