Saturday, June 19, 2010

कायरो के हाथ में शमशीर भी सजती नहीं है

यातना से यंत्रणा से जूझता अब देश
बंशी चैन की बजती कहीं है

उमड़ आया है यहाँ
सैलाब सडको पर
बंद कमरों में उधर
संगीत चलता है

अनिश्चय की आग में
जलती युवा पीढ़ी
तपने को हाथ अब
आदेश मिलता है

अब करो आह्वान फिर नटराज का
कथा भस्मासुर, अधिक चलती नहीं है

अस्मिता से देश की
उपहास रोको
दांव पर हर एक घर की
लाज रोको
जाती भाषा प्रान्त
सब रूठे पड़े हैं
द्वेष के शर राह
पर तिरछे अड़े हैं

भूल कर सत्ता पिपासा मौन बैठो
कायरो के हाथ में शमशीर भी सजती नहीं है

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