यातना से यंत्रणा से जूझता अब देश
बंशी चैन की बजती कहीं है
उमड़ आया है यहाँ
सैलाब सडको पर
बंद कमरों में उधर
संगीत चलता है
अनिश्चय की आग में
जलती युवा पीढ़ी
तपने को हाथ अब
आदेश मिलता है
अब करो आह्वान फिर नटराज का
कथा भस्मासुर, अधिक चलती नहीं है
अस्मिता से देश की
उपहास रोको
दांव पर हर एक घर की
लाज रोको
जाती भाषा प्रान्त
सब रूठे पड़े हैं
द्वेष के शर राह
पर तिरछे अड़े हैं
भूल कर सत्ता पिपासा मौन बैठो
कायरो के हाथ में शमशीर भी सजती नहीं है
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