गुलमोहर से दिन
दूर से ही ये लुभाते
ठहरते पल छिन
सुखद स्मृतियाँ कभी
अपना बनाती हैं
और फिर कचनार सी
खिलती लजाती हैं
ये कभी किसकी हुई हैं
और कितने दिन
घोलकर मधु आज
महुआ कर रहा बातें
और कितने दिन चलेंगी
रसभरी घातें
कौन सी गाथा लिखेंगे
ये परागी दिन
हम कहीं भी हो संदेसा
पवन लाती हैं
यह बिना बोले बहुत
कुछ बोल जाती हैं
यह अबोली नेह पाती
बांटती अनगिन
अमलतासी साँझ हो या
गुलमोहर से दिन
दूर से ही ये लुभाते
ठहरते पल छिन
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