Saturday, June 19, 2010

अमलतासी साँझ

अमलतासी साँझ हो या
गुलमोहर से दिन
दूर से ही ये लुभाते
ठहरते पल छिन

सुखद स्मृतियाँ कभी
अपना बनाती हैं
और फिर कचनार सी
खिलती लजाती हैं

ये कभी किसकी हुई हैं
और कितने दिन

घोलकर मधु आज
महुआ कर रहा बातें
और कितने दिन चलेंगी
रसभरी घातें

कौन सी गाथा लिखेंगे
ये परागी दिन

हम कहीं भी हो संदेसा
पवन लाती हैं
यह बिना बोले बहुत
कुछ बोल जाती हैं

यह अबोली नेह पाती
बांटती अनगिन 


अमलतासी साँझ हो या 
गुलमोहर से दिन 
दूर से ही ये लुभाते
ठहरते पल छिन

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