Saturday, October 5, 2013

कह मेरे मन, बात मन की कह।

कह मेरे मन, बात मन की कह।
झेलता आया बहुत सी,
आंधियां तूफ़ान।
हर जगह बस बचाता आया,
स्वतः की आन।

इस प्रभंजन से निकल, अब और कुछ मत सह,
कह मेरे मन, बात मन की कह।

कहाँ बिछती पंखुरियां,
जो पैर सहलाये।
कहाँ अंगारे न तपते,
पग न झुलसाये।

अपेक्षाओ से निकल तू, राह अपनी गह,
कह मेरे मन, बात मन की कह।

क्षितिज तक उतरा हुआ,
आकाश देखा है।
नील सागर का उमड़ता,
ज्वार देखा है।

अब पुलिन का सहारा भी छोड़ कर तू बह।
कह मेरे मन, बात मन की कह।

सुरभि खोजते भाग रहे हम मृग कस्तूरी के।

सुरभि खोजते भाग रहे हम मृग कस्तूरी के।

क्या मिल जाये किसे सहेजे,
कितनी अभिलाषा।
निर्मल जल में डूब रहा,
मन नख - शिख तक प्यासा।

सूखा कंठ सुलगती चितवन कुछ तो कहती है,
हम अपने में सिमट गए, अपनी ही दूरी से।

वन पांखी तुम नभ में
उड़ते गीत सुनाते हो।
पुरइन के पत्तो पर,
घर संसार सजाते हो।

रंग बिरंगे सजा कुमकुमे, अपने पंखो में,
नांचे मुखर मयूर, विहसते नयन मयूरी के।          

सुरभि खोजते भाग रहे हम मृग कस्तूरी के।

पिता कौन सा घर है मेरा।

पिता कौन सा घर है मेरा

किस घर की सांकल खटकाऊ,
किस चौखट पर शीश झुकाऊ।
कहाँ सुरक्षित रह पाउंगी,
कहाँ न दुत्कारी जाउंगी।  
बड़ी दुधारी राह बन गयी, कितने ही प्रश्नों ने घेरा।
पिता कौन सा घर है मेरा।

यहाँ पराया धन कहलायी,
वहां पराये घर की बेटी।
कहीं न पैर टिके धरती पर,
कहने में होती है ठेठी।
मन बीहड़ में भटक रहा है, जैसे बंजारे का डेरा।
पिता कौन सा घर है मेरा।

तुमने कन्या दान कर दिया,
पुण्य किया दानी कहलाये।
तुम तो माँ भाभी सबको भी,
दान पुण्य में ही ले आये।  
अब तो न्याय करो बेटी संग, मिटे धुंधलका मिटे अँधेरा।
पिता कौन सा घर है मेरा।

दान दहेज़ नहीं बस कुछ भी,
स्वाभिमान की आस जगी है।
न्याय समय से हो न सकेगा,
कुछ करने की प्यास जगी है।
अपनी राह स्वयं चलने को, आज बढ़ रहा है पग मेरा।
पिता कौन सा घर है मेरा।

मै अपराजिता


मै अपराजिता
मिट्टी में पानी में, सब में अलंकृता।

हर पल संजोया है
दुखते हुए मन में।
प्रीति कण बोया है,
फिर  भी हर क्षण में।

धरती सा धीरज,
इसे तोड़ नहीं पाओगे।
मोह कहो माया कहो
छोड़ नहीं पाओगे।

प्रकृति ने हर पल लिखा है मेरा पता।
मै अपराजिता।

फूलों से सुरभित,
कांटो से घेरी हुयी।
आदि से अंत तक,
मेरी ही फेरी हुयी।

सारा संसार मेरी,
पग ध्वनि पर नाचा है।
गीता रामायण सबने,
मुझे ही तो बांचा है।

सूरज की किरण मै, चांदनी सी सुष्मिता।
मै अपराजिता।