Saturday, June 19, 2010

यदि जीवन में प्यार न होता

नेह डोर से बंधे न होते
तो जीवन क्या जीवन होता

कैसे राग मल्हार समझते
कैसे गाते सुखद प्रभाती
कैसे सपनो के सागर में
जीवन की नैया लहराती

सुख दुःख सब सुने रह जाते
यदि जीवन में प्यार न होता

नेह डोर से बंधे न होते
तो जीवन क्या जीवन होता

विरहा की भीगी तानो में
मुखर न होती मन की भाषा
और प्रतीक्षारत चातक भी 
क्यों गाता मन की अभिलाषा

विरह मिलन की निर्झरनी में
जीने का आधार न होता
नेह डोर से बंधे न होते
तो जीवन क्या जीवन होता

धरती के स्नेहिल रिश्तो को
मोहजाल का नाम न देना
यह बंधन इतिहास बनाते 
सजता घर का कोना कोना

मरघट सा सूनापन होता
यह सुन्दर संसार न होता
नेह डोर से बंधे न होते
तो जीवन क्या जीवन होता



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