Sunday, July 16, 2017

मलय का झोंका आने दो

बंद करो मत द्वार मलय का झोंका आने दो

यों तो हर ऋतु को मधुमास नहीं कहते
हर उत्सव के  हर पल को उल्हास नहीं कहते

राह वही है राही तो बस चलते हैं
नयनो में सतरंगे सपने पलते हैं

इनके सपनो को कुछ तो शीतल हो जाने दो
बंद करो मत द्वार मलय का झोंका आने दो

बड़ी घुटन होती है बंद झरोखों से
आँखे पनियाती हैं चारो कोनो से

रोम रोम से बस अवसाद झलकता है
मन का कोना कोना खाली लगता है

इस खालीपन को थोड़ा सा भर जाने दो
बंद करो मत द्वार मलय का झोंका आने दो  

अब घर वापस जाना होगा

यात्रा पर निकले थे बंधु
अब घर वापस जाना होगा |

राख धूल मिटटी में भी देखा जीवन की गति रहती है
सूरज के उजियारे से अंधियारे की सहमति रहती है

साथ नहीं देता जब कोई चरण स्वयं बढ़ते जाते हैं
हम हर पल हर क्षण में अपने जीबन को गढ़ते जाते हैं

तमस तपन सबसे निकले तब कुछ उजास तो पाना होगा
अब घर वापस जाना होगा |

यात्रा का वृत्रांत कठिन है सरल नहीं सब कुछ सह जाना
झाड़ और झंखाड़ों में भी हंसकर ही सब कुछ सह जाना

कडुआ मीठा गरल और मधु सब मिल जल कर साथ चले हैं
कह न सके हम तो आजीवन स्नेहिल लौ के साथ जले हैं

सहन शक्ति की सतत परीक्षा देकर मन बहलाना होगा
अब घर वापस जाना होगा |

यात्रा का अंतिम पड़ाव है अब क्या कहना अब क्या सुनना
भूली बिसरी कुछ सुधियो को केवल अंतर्मन में गुनना

लाभ लोभ सबसे मन छूटे गुना घटाना सब रह जाए
बाहर भीतर एक कहानी जो अंधियारे को सह जाए

पाप पुण्य सब यही छोड़ कर नव जीवन को पाना होगा
अब घर वापस जाना होगा