कह मेरे मन, बात मन की कह।
झेलता आया बहुत सी,
आंधियां तूफ़ान।
हर जगह बस बचाता आया,
स्वतः की आन।
इस प्रभंजन से निकल, अब और कुछ मत सह,
कह मेरे मन, बात मन की कह।
कहाँ बिछती पंखुरियां,
जो पैर सहलाये।
कहाँ अंगारे न तपते,
पग न झुलसाये।
अपेक्षाओ से निकल तू, राह अपनी गह,
कह मेरे मन, बात मन की कह।
क्षितिज तक उतरा हुआ,
आकाश देखा है।
नील सागर का उमड़ता,
ज्वार देखा है।
अब पुलिन का सहारा भी छोड़ कर तू बह।
कह मेरे मन, बात मन की कह।