मैं अपराजिता !
मिट्टी में पानी में सबमें अलंकृता
कण कण संजोया है,
दुखते हुए मन में ।
प्रीति राग बोया है,
फिर भी हर क्षण में ।
धरती सा धीरज,
इसे तोड़ नहीं पाओगे ।
मोह कहो माया कहो,
छोड़ नहीं पाओगे ।
प्रकृति ने हर जगह, लिख दिया मेरा पता ।
फूलों से सुरभित,
काँटों से घेरी हुयी ।
आदि से अंत तक,
मेरी ही फेरी हुयी ।
सारा संसार मेरी,
पगध्वनि पर नाचा है ।
गीता रामायण सबने,
मुझे ही बांचा है ।
सूरज कि किरण में, चांदी सी सुष्मिता ।
मैं अपराजिता !
मिट्टी में पानी में सबमें अलंकृता
कण कण संजोया है,
दुखते हुए मन में ।
प्रीति राग बोया है,
फिर भी हर क्षण में ।
धरती सा धीरज,
इसे तोड़ नहीं पाओगे ।
मोह कहो माया कहो,
छोड़ नहीं पाओगे ।
प्रकृति ने हर जगह, लिख दिया मेरा पता ।
फूलों से सुरभित,
काँटों से घेरी हुयी ।
आदि से अंत तक,
मेरी ही फेरी हुयी ।
सारा संसार मेरी,
पगध्वनि पर नाचा है ।
गीता रामायण सबने,
मुझे ही बांचा है ।
सूरज कि किरण में, चांदी सी सुष्मिता ।
मैं अपराजिता !