Friday, May 28, 2010

आचमन सीपियों से

एक मधु स्मृति तुम्हारी 
और कांटे बींधता संपूर्ण जीवन


आ रही ऋतुएं बदल कर 
नित नए परिधान
कभी तरु पर नयी फूटी कोपलें 
चह चाहते पक्षियों के गान


किन्तु मन के किसी कोने में 
ह्रदय करता सीपियों से आचमन  

एक मधु स्मृति तुम्हारी 
और कांटे बींधता संपूर्ण जीवन

तुम न आओगे 
हवाओं ने दिए संकेत
द्वार चौखट बांधते
फिर भी रहे अनिकेत

एक बंधन स्नेह का कैसा हठीला 
छीजता है भीग कर संपूर्ण तन मन 
एक मधु स्मृति तुम्हारी 
और कांटे बींधता संपूर्ण जीवन 

पत्तो पर लिखा स्वागत

चन्दन गंध उठी मिट्टी से
बूंद बूंद होती पहुनाई


क्या है इसकी मधुर कल्पना 
किसको किसका आमंत्रण है
मोर पपिहरा हँसते गाते 
रोम रोम से अभिनन्दन है 


पत्तो पर स्वागत लिखने को
हंस हंस कर चल दी पुरवाई  

चन्दन गंध उठी मिट्टी से
बूंद बूंद होती पहुनाई

चांदी के नूपुर बजने सा 
मोहक स्वर बस झूम रहा है
हल्दी अक्षत सजे पत्र ले 
हरकारा ज्यों घूम रहा है

द्वार द्वार है नेह निमंत्रण 
आंगन आंगन में शहनाई 
चन्दन गंध उठी मिट्टी से
बूंद बूंद होती पहुनाई


गोधुली के सपने

वेणु वन बंसी के राग कहीं खोये

गोकुल वृन्दावन की गलियां पुकारती
राधा की अलसाई अँखियाँ निहारती
पोर पोर सूखा पर रसवंती राग था
रोम रोम जाग उठे कैसा अनुराग था

एक स्वर बंसी का सुनने को आतुर
गोधुली बेला ने सपने संजोये
वेणु वन बंसी के राग कहीं खोये

बीन लिए घूम रहा बन बन सपेरा
सांपों के घेरे हैं सापों का डेरा
कुंडली लगाती सी प्रश्न की पिटारी
जीवन व्यापर हुआ सांसे उधारी

पीतवर्ण पत्तो में सहमे से छंद लिए
हरे भरे वेणु वन तुम कहाँ सोये
वेणु वन बंसी के राग कहीं खोये

स्वप्न के संवाद

साँझ आयी साथ लायी गुनगुनाती लोरियां

मुखुर कलरव चपल चंचल
नीड़ में आह्लाद अविरल
सज रही सुन्दर स्वरों में आरती की टोलियाँ
साँझ आयी साथ लायी गुनगुनाती लोरियां

दिवस की तपती हुयी सी रेत
लिए शीतलता करे संकेत
बैठ लो कुछ देर मेरे पास
बोल कर दो चार मीठी बोलियाँ
साँझ आयी साथ लायी गुनगुनाती लोरियां

नींद का अपना अलग है राग
पुतलियो में स्वप्न के संवाद
स्वयं में छिपती छिपती सी
रंग गयी संध्या सुखद रंगोलियाँ
साँझ आयी साथ लायी गुनगुनाती लोरियां

Wednesday, May 26, 2010

बचपन चुरा लायें

कभी कभी मन करता, ऐसा कुछ कर पायें
पीहर के आँगन से बचपन चुरा लायें


लुका छिपी खेल खेलें
घर के हर कोने में
सारे दिन घूम रहे
गुडिया खिलोनो में
झुर्रियो भरे चेहरे
हंसी से निखर आयें
प्यार और झिडकी भी
आँखों में चमक लाये
संग संग फिर खेले, परियां कहानी की
मन उड़े पंछी सा अम्बर को छू आयें


कभी कभी मन करता, ऐसा कुछ कर पायें
पीहर के आँगन से बचपन चुरा लायें

हम तो धान के बिरवा
कहीं बोये कहीं रोपे
भाग्य की अंगुली पकड़
धुप छांव में खोये
आँख पानी भरती
धुंए के काजल से
बांध गया मन बैरी
ममता के अंचल से

कहाँ कितना खोया कहाँ कुछ मिल पाया 
यही मन की गाथा कहीं तो सुना आये 

कभी कभी मन करता, ऐसा कुछ कर पायें
पीहर के आँगन से बचपन चुरा लायें

पुतलियो के दीप

घूम घिर कर आ गयी
फिर से बरसने को घटायें


याद आयीं झील सी आँखे
कि जिसमे स्वप्न पलते थे
और काली पुतलियो में भी
सुनहरे दीप जलते थे


टूटती हैं बूंद झिलमिल
कांपती बहती हवाएं


घूम घिर कर आ गयी 
फिर से बरसने को घटायें

तुम कहाँ हो द्वार, घर
आँगन सभी तो पूछते हैं
और हम तट पर खड़े 
फिर भी भंवर में जून्झते हैं

बिखरते मन को कहाँ तक
ज्ञान दे सकती ऋचाएं 
घूम घिर कर आ गयी 
फिर से बरसने को घटायें



Tuesday, May 25, 2010

मलय वन के गेह द्वारे

पत्थरो के शहर से
आये हैं झुलसे पैर ले कर
गाँव मेरे! नेह की अमराइयों
से बोल देना


बोलना ये भीड़ में
खोये हुए थे आ गए
चांदनी में भीगते से
छंद इनको भा गए


ओस बूंदे पैर की उष्मा हरे जब तक
गाँव मेरे! मलय वन के गेह द्वारे खोल देना


पत्थरो के शहर से...

धुल चिमनी का धुआं 
आकाश छूते घर मिले
चाहतो के मेघ बरसे 
किन्तु मन बंजर रहे 

साँझ शेफाली हँसे जब ठिठकती निकले समीरण 
गाँव मेरे! तुम चरण गति में मधुर मधु घोल देना.

पत्थरो के शहर से
आये हैं झुलसे पैर ले कर
गाँव मेरे! नेह की अमराइयों 
से बोल देना

मन हिरना

कौन दीपक सा जले कब तक जले


आंधियां परछाईयों सी
साथ जब रहने लगे
कुछ न कहकर शूल सा
आघात बस देने लगे
बादलो से मांग लें
बिजली सितारे तोड़ ले
बांध मन हिरना कहीं
सुने विजन में छोड़ दें


किन्तु फिर भी अँधेरे का क्या भरोसा कब चले 
कौन दीपक सा जले कब तक जले


यह अकेले एक की ही
बात हो ऐसा नहीं कुछ
यह तुम्हारे ही लिए
आघात हो ऐसा नहीं कुछ
हम सभी तो मात्र
मिट्टी के खिलोने हैं
स्वप्न में आकाश छू लेते
किन्तु मन से बहुत बौने हैं


रेत को कहते रहे चन्दन उषीर
हम न ऐसे नेह नातो में पाले


कौन दीपक सा जले कब तक जले

आओ लौट अपने घर चले

ढल चुका सूरज हुयी परछाईयाँ तिरछी
मीत आओ लौट अपने घर चले


पुलिन पर रुक कर 
सहारे की न करना बात
क्या पता अंगुली पकड़ कर
कौन दे आघात
सामने सिंदूर बिखरा
शिथिल होता व्योम
पंख खोले पंख तोले
विहाग उड़ते मौन


ये सभी बेमेल सपना सा बने जब तक
मीत आओ लौट अपने घर चले


हम समय के साथ
चलने का लिए अनुबंध
चले या दौड़े, नहीं
होते कभी स्वच्छंद
पैर पथरीली डगर पर
रुक नहीं पाते
यह मनोबल था
कहीं भी झुक नहीं पाते


बिंध न जाये शूल से मन के सुकोमल छंद
मीत आओ लौट अपने घर चले




ढल चुका सूरज हुयी परछाईयाँ तिरछी
मीत आओ लौट अपने घर चले

Saturday, May 22, 2010

मिलन के स्वर

एक मिट्टी के दिए में


नेह भर कर आरती के
गीत गए
मिलन के स्वर
झिलमिलाये
दूर करने को अँधेरा
ज्योति के कण
खिलखिलाए
बांटता उल्लास तम को घेर कर अपने हिये में
एक मिट्टी के दिए में


साधना आराधना के
छंद बोलो
वंदना का स्वर
अधुरा रह न जाये
द्वार खोलो
द्वार खोलो प्रीत
के दो बोल मीठे
रह न जाये
वर्तिका से अँधेरे
चुपचाप कुछ
कहने न पाए
चुभ न जाये बात कोई मोम से कोमल हिये में
एक मिट्टी के दिए में

अंजुली में पलाश

डोली फगुनाई हवा
बंद द्वार हौले से
सांकल खडका गयी


भूली बिसरायी अनेक
सुधियाँ चहकने लगी
वेणी में गूंथे गुलाब
नयनो में लाली जगी


अंजुली में भर भर पलाश, हंस हंस के बिखरा गयी


जागी कचनार की कली
बैजनी सुहास बिखेरा
हंसी हंसी में थिरक उठा
अलसाया साँझ सबेरा


नदिया में हलचल हुयी लहर लहर सिहरा गयी 

मन बंजारा

मन बंजारा
गली गली दर दर भटकाए
नील गगन में पर फैलाये
कुतिया में भी रहने पर यह
शीश महल के स्वप्न दिखाए

बड़ा हठीला
अंगुली पकडे
रोज घुमाता यह जग सारा
मन बंजारा

सागर इसका मोती इसके
लहरों के स्पंदन इसके
नाच नचाये यह मनमाना
नूपुर इसके रुनझुन इसके

खुली आँख में
स्वप्न सजाता
फिर भी लगता सबको प्यारा
मन बंजारा

सुख से भागे दुःख से भागे
याचक सा हर घर में झांके
कभी धरा पर कभी गगन पर
इसकी गति कोई क्या नापे

इसका कहीं
न ठौर ठिकाना
स्वयं विधाता इससे हरा
मन बंजारा 

Friday, May 21, 2010

रख दी तेग दुधारी होगी

तेरे आँगन में छिपकर जब
मेरा प्रणय निवेदन रोया
तुने सुनी अनसुनी कर दी
कोई तो लाचारी होगी.

यही नहीं मेरी पीड़ा को
पवन उड़ाकर जब ले आयी
तेरे द्वार झरोखों ने भी
गुपचुप दी थी मुझे विदाई.

रातें हीर दिवस रांझे थे
फिर भी समझ न पाए अब तक
तेरे कोमल मन पर किसने
रख दी तेग दुधारी होगी

वर्षा बीती खिले गगन पर
तारे नीचे जुगनू चमचम
शेफाली की महक बावली
नाच रही है उपवन उपवन

कमल पत्र पर गिरती बूंदे
ठहर न पाती परभर लेकिन
तूने किसका मन रखने को
बनती बात बिगड़ी होगी.

स्वयंसिद्धा हूँ

माँ मुझे तू जन्म दे तेरे लहू का अंश हू मैं.

मारना आसन है मुझको बहुत मै जानती हूँ.
हूँ बहुत निरुपाय बंधन में बंधी यह मानती हूँ.
बोझ हूँ तेरे लिए क्या तू इसे सच कह सकेगी?
जीव हत्या कर भला क्या तू सुखी हो रह सकेगी.

कोख के इस पालने में घुट रही हूँ मै निरंतर,
और तू भी सिसकियो से रो रही है.
पेट में अपराधियों सा रख मुझे तू
क्यों भला मातृत्व सुख भी खो रही है.

माँ! घिनौनी साजिशो में तू न आना
फूलता फलता तेरा ही वंश हूँ मै.

बंद मेरी मुट्ठियों में भाग्य भी है कर्म भी.
मै स्वयं ही शक्ति हूँ मुझमे सृजन का धर्म भी
माँ सशंकित रह न तू बस मार्ग का विस्तार कर दे
आ रही हूँ मै अधर्मी का यहाँ निस्तार करने.

माँ! ह्रदय से तू लगा कर कह मुझे संतान अपनी
बन सकूँ तेरा सहारा बन सकूँ पहचान अपनी
स्वयंसिद्धा हूँ मुझे तू मार कर अपराध मत कर 
दो कुलों का यश बढाती हूँ सदा यह ध्यान तो कर.

भय न कर अब द्वार स्वागत का सजा ले
हर दरिन्दे के लिए विष दंश हूँ मै

माँ मुझे तू जन्म दे तेरे लहू का अंश हू मैं.

गगन छोर छूने दो

नदिया हूँ, बहने दो,
धूप छांव सहने दो.

लहरों से किनारों से,
मचलते मझदारो से,
जल की जलाशय की
बात कुछ कहने दो.


नदिया हूँ, बहने दो,
धूप छांव सहने दो.


रुकने का अर्थ नहीं,
बहना भी व्यर्थ नहीं,
जीवन का घात प्रतिघात,
सब सहने दो.


नदिया हूँ, बहने दो,
धूप छांव सहने दो.

कल कल ध्वनि की किलोल,
नाचे अब जग हिलोर,
मन की विहन्गनी को,
गगन छोर छूने दो.

नदिया हूँ, बहने दो,
धूप छांव सहने दो.

शक्ति पूजन

बेटियां शीतल हवाएं ही नहीं हैं
शक्ति हैं ये शक्ति का पूजन करो अब.

ये धरा सी सहनशीला,
गगन सा विस्तार इनमे.
विगत आहत को सम्हाले
वर्तमान हुलास इनमे.

इन्हें बेचारी न कह वंदन करो अब,
शक्ति हैं ये शक्ति का पूजन करो अब.

दीप बेटा है अगर  तो
वहीँ बेटी वर्तिका है
वंश का गौरव दिए से
और बाती से सजा है.

ये समय को दे रही आवाज़
अभिनन्दन करो अब,
शक्ति हैं ये शक्ति का पूजन करो अब.

Thursday, May 20, 2010

हर लहर पर नाम लिख दे

खो न जाये हम समय की तेज धारा में
लेखनी तू हर लहर पर अब हमारा नाम लिख दे.

पुलिन तक फिर कौन जाये,
हम कभी जाएँ न जाएँ.
और जीवन के भंवर में
हैं बड़ी अनजान राहें .

जब समय की हाट पर घिरने लगें बादल धुएं के,
लेखनी तब हर डगर पर तू हमारा नाम लिख दे.


खो न जाये हम समय की तेज धारा में
लेखनी तू हर लहर पर अब हमारा नाम लिख दे.

धुल मिट्टी में बिहंसता,
खो गया बचपन हठीला.
कामना के पंख ले
उड़ता रहा जीवन सजीला.

रात अंधियारी घिरे जब, गगन पर बिखरे सितारे,
लेखनी तू हर सितारे पर हमारा नाम लिख दे.

खो न जाये हम समय की तेज धारा में
लेखनी तू हर लहर पर अब हमारा नाम लिख दे.

मृग कस्तूरी के

सुरभि खोजते भाग रहे हम,
मृग कस्तूरी के.

क्या मिल जाये, किसे सहेजें,
कितनी अभिलाषा.
निर्मल जल में डूब रहा मन,
नख शिख तक प्यासा.

सुखा कंठ सुलगती चितवन
कुछ तो कहती है
हम अपने में सिमट गए
अपनी ही दुरी से.


सुरभि खोजते भाग रहे हम,
मृग कस्तूरी के. 

वन पंखी तुम नभ में उड़ते 
गीत सुनाते हो.
पुरैन के पत्तो पर 
घर संसार सजाते हो.

रंग बिरंगे सजा कुमकुमे 
अपने पंखो में,
नाचे मन मयूर 
विहास्ते नयन मयूरी के.

सुरभि खोजते भाग रहे हम,
मृग कस्तूरी के.