Friday, May 21, 2010

स्वयंसिद्धा हूँ

माँ मुझे तू जन्म दे तेरे लहू का अंश हू मैं.

मारना आसन है मुझको बहुत मै जानती हूँ.
हूँ बहुत निरुपाय बंधन में बंधी यह मानती हूँ.
बोझ हूँ तेरे लिए क्या तू इसे सच कह सकेगी?
जीव हत्या कर भला क्या तू सुखी हो रह सकेगी.

कोख के इस पालने में घुट रही हूँ मै निरंतर,
और तू भी सिसकियो से रो रही है.
पेट में अपराधियों सा रख मुझे तू
क्यों भला मातृत्व सुख भी खो रही है.

माँ! घिनौनी साजिशो में तू न आना
फूलता फलता तेरा ही वंश हूँ मै.

बंद मेरी मुट्ठियों में भाग्य भी है कर्म भी.
मै स्वयं ही शक्ति हूँ मुझमे सृजन का धर्म भी
माँ सशंकित रह न तू बस मार्ग का विस्तार कर दे
आ रही हूँ मै अधर्मी का यहाँ निस्तार करने.

माँ! ह्रदय से तू लगा कर कह मुझे संतान अपनी
बन सकूँ तेरा सहारा बन सकूँ पहचान अपनी
स्वयंसिद्धा हूँ मुझे तू मार कर अपराध मत कर 
दो कुलों का यश बढाती हूँ सदा यह ध्यान तो कर.

भय न कर अब द्वार स्वागत का सजा ले
हर दरिन्दे के लिए विष दंश हूँ मै

माँ मुझे तू जन्म दे तेरे लहू का अंश हू मैं.

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