एक मिट्टी के दिए में
नेह भर कर आरती के
गीत गए
मिलन के स्वर
झिलमिलाये
दूर करने को अँधेरा
ज्योति के कण
खिलखिलाए
बांटता उल्लास तम को घेर कर अपने हिये में
एक मिट्टी के दिए में
साधना आराधना के
छंद बोलो
वंदना का स्वर
अधुरा रह न जाये
द्वार खोलो
द्वार खोलो प्रीत
के दो बोल मीठे
रह न जाये
वर्तिका से अँधेरे
चुपचाप कुछ
कहने न पाए
चुभ न जाये बात कोई मोम से कोमल हिये में
एक मिट्टी के दिए में
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