Saturday, May 22, 2010

मन बंजारा

मन बंजारा
गली गली दर दर भटकाए
नील गगन में पर फैलाये
कुतिया में भी रहने पर यह
शीश महल के स्वप्न दिखाए

बड़ा हठीला
अंगुली पकडे
रोज घुमाता यह जग सारा
मन बंजारा

सागर इसका मोती इसके
लहरों के स्पंदन इसके
नाच नचाये यह मनमाना
नूपुर इसके रुनझुन इसके

खुली आँख में
स्वप्न सजाता
फिर भी लगता सबको प्यारा
मन बंजारा

सुख से भागे दुःख से भागे
याचक सा हर घर में झांके
कभी धरा पर कभी गगन पर
इसकी गति कोई क्या नापे

इसका कहीं
न ठौर ठिकाना
स्वयं विधाता इससे हरा
मन बंजारा 

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