मृग कस्तूरी के.
क्या मिल जाये, किसे सहेजें,
कितनी अभिलाषा.
निर्मल जल में डूब रहा मन,
नख शिख तक प्यासा.
सुखा कंठ सुलगती चितवन
कुछ तो कहती है
हम अपने में सिमट गए
अपनी ही दुरी से.
सुरभि खोजते भाग रहे हम,
मृग कस्तूरी के.
वन पंखी तुम नभ में उड़ते
गीत सुनाते हो.
पुरैन के पत्तो पर
घर संसार सजाते हो.
रंग बिरंगे सजा कुमकुमे
अपने पंखो में,
नाचे मन मयूर
विहास्ते नयन मयूरी के.
सुरभि खोजते भाग रहे हम,
मृग कस्तूरी के.
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