Friday, May 28, 2010

स्वप्न के संवाद

साँझ आयी साथ लायी गुनगुनाती लोरियां

मुखुर कलरव चपल चंचल
नीड़ में आह्लाद अविरल
सज रही सुन्दर स्वरों में आरती की टोलियाँ
साँझ आयी साथ लायी गुनगुनाती लोरियां

दिवस की तपती हुयी सी रेत
लिए शीतलता करे संकेत
बैठ लो कुछ देर मेरे पास
बोल कर दो चार मीठी बोलियाँ
साँझ आयी साथ लायी गुनगुनाती लोरियां

नींद का अपना अलग है राग
पुतलियो में स्वप्न के संवाद
स्वयं में छिपती छिपती सी
रंग गयी संध्या सुखद रंगोलियाँ
साँझ आयी साथ लायी गुनगुनाती लोरियां

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