बूंद बूंद होती पहुनाई
क्या है इसकी मधुर कल्पना
किसको किसका आमंत्रण है
मोर पपिहरा हँसते गाते
रोम रोम से अभिनन्दन है
पत्तो पर स्वागत लिखने को
हंस हंस कर चल दी पुरवाई
चन्दन गंध उठी मिट्टी से
बूंद बूंद होती पहुनाई
चांदी के नूपुर बजने सा
मोहक स्वर बस झूम रहा है
हल्दी अक्षत सजे पत्र ले
हरकारा ज्यों घूम रहा है
द्वार द्वार है नेह निमंत्रण
आंगन आंगन में शहनाई
चन्दन गंध उठी मिट्टी से
बूंद बूंद होती पहुनाई
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