आये हैं झुलसे पैर ले कर
गाँव मेरे! नेह की अमराइयों
से बोल देना
बोलना ये भीड़ में
खोये हुए थे आ गए
चांदनी में भीगते से
छंद इनको भा गए
ओस बूंदे पैर की उष्मा हरे जब तक
गाँव मेरे! मलय वन के गेह द्वारे खोल देना
पत्थरो के शहर से...
धुल चिमनी का धुआं
आकाश छूते घर मिले
चाहतो के मेघ बरसे
किन्तु मन बंजर रहे
साँझ शेफाली हँसे जब ठिठकती निकले समीरण
गाँव मेरे! तुम चरण गति में मधुर मधु घोल देना.
पत्थरो के शहर से
आये हैं झुलसे पैर ले कर
गाँव मेरे! नेह की अमराइयों
से बोल देना
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