पीहर के आँगन से बचपन चुरा लायें
लुका छिपी खेल खेलें
घर के हर कोने में
सारे दिन घूम रहे
गुडिया खिलोनो में
झुर्रियो भरे चेहरे
हंसी से निखर आयें
प्यार और झिडकी भी
आँखों में चमक लाये
संग संग फिर खेले, परियां कहानी की
मन उड़े पंछी सा अम्बर को छू आयें
कभी कभी मन करता, ऐसा कुछ कर पायें
पीहर के आँगन से बचपन चुरा लायें
हम तो धान के बिरवा
कहीं बोये कहीं रोपे
भाग्य की अंगुली पकड़
धुप छांव में खोये
आँख पानी भरती
धुंए के काजल से
बांध गया मन बैरी
ममता के अंचल से
कहाँ कितना खोया कहाँ कुछ मिल पाया
यही मन की गाथा कहीं तो सुना आये
कभी कभी मन करता, ऐसा कुछ कर पायें
पीहर के आँगन से बचपन चुरा लायें
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