Friday, May 21, 2010

रख दी तेग दुधारी होगी

तेरे आँगन में छिपकर जब
मेरा प्रणय निवेदन रोया
तुने सुनी अनसुनी कर दी
कोई तो लाचारी होगी.

यही नहीं मेरी पीड़ा को
पवन उड़ाकर जब ले आयी
तेरे द्वार झरोखों ने भी
गुपचुप दी थी मुझे विदाई.

रातें हीर दिवस रांझे थे
फिर भी समझ न पाए अब तक
तेरे कोमल मन पर किसने
रख दी तेग दुधारी होगी

वर्षा बीती खिले गगन पर
तारे नीचे जुगनू चमचम
शेफाली की महक बावली
नाच रही है उपवन उपवन

कमल पत्र पर गिरती बूंदे
ठहर न पाती परभर लेकिन
तूने किसका मन रखने को
बनती बात बिगड़ी होगी.

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