तेरे आँगन में छिपकर जब
मेरा प्रणय निवेदन रोया
तुने सुनी अनसुनी कर दी
कोई तो लाचारी होगी.
यही नहीं मेरी पीड़ा को
पवन उड़ाकर जब ले आयी
तेरे द्वार झरोखों ने भी
गुपचुप दी थी मुझे विदाई.
रातें हीर दिवस रांझे थे
फिर भी समझ न पाए अब तक
तेरे कोमल मन पर किसने
रख दी तेग दुधारी होगी
वर्षा बीती खिले गगन पर
तारे नीचे जुगनू चमचम
शेफाली की महक बावली
नाच रही है उपवन उपवन
कमल पत्र पर गिरती बूंदे
ठहर न पाती परभर लेकिन
तूने किसका मन रखने को
बनती बात बिगड़ी होगी.
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