Friday, May 28, 2010

गोधुली के सपने

वेणु वन बंसी के राग कहीं खोये

गोकुल वृन्दावन की गलियां पुकारती
राधा की अलसाई अँखियाँ निहारती
पोर पोर सूखा पर रसवंती राग था
रोम रोम जाग उठे कैसा अनुराग था

एक स्वर बंसी का सुनने को आतुर
गोधुली बेला ने सपने संजोये
वेणु वन बंसी के राग कहीं खोये

बीन लिए घूम रहा बन बन सपेरा
सांपों के घेरे हैं सापों का डेरा
कुंडली लगाती सी प्रश्न की पिटारी
जीवन व्यापर हुआ सांसे उधारी

पीतवर्ण पत्तो में सहमे से छंद लिए
हरे भरे वेणु वन तुम कहाँ सोये
वेणु वन बंसी के राग कहीं खोये

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