Saturday, May 22, 2010

अंजुली में पलाश

डोली फगुनाई हवा
बंद द्वार हौले से
सांकल खडका गयी


भूली बिसरायी अनेक
सुधियाँ चहकने लगी
वेणी में गूंथे गुलाब
नयनो में लाली जगी


अंजुली में भर भर पलाश, हंस हंस के बिखरा गयी


जागी कचनार की कली
बैजनी सुहास बिखेरा
हंसी हंसी में थिरक उठा
अलसाया साँझ सबेरा


नदिया में हलचल हुयी लहर लहर सिहरा गयी 

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