डोली फगुनाई हवा
बंद द्वार हौले से
सांकल खडका गयी
भूली बिसरायी अनेक
सुधियाँ चहकने लगी
वेणी में गूंथे गुलाब
नयनो में लाली जगी
अंजुली में भर भर पलाश, हंस हंस के बिखरा गयी
जागी कचनार की कली
बैजनी सुहास बिखेरा
हंसी हंसी में थिरक उठा
अलसाया साँझ सबेरा
नदिया में हलचल हुयी लहर लहर सिहरा गयी
No comments:
Post a Comment