Monday, August 26, 2019

नया सृजन कर सके धरा

नया सृजन कर सके धरा आकाश नया दो |

एक बूँद को निरख सभी ने जीवन धारा,
एक धार से लक्ष्य सभी ने अपना चाहा |
अब तो लगता है बोझिल हर राग पुराना,
नया गीत गए सके कंठ उल्लास नया दो |  
नया सृजन कर सके धरा आकाश नया दो | 

हँसते झरते सुमन पुरानी सी सौरभ ले,
उड़ते नित्य विहंग परिधि का ही वैभव ले |
सुमन कली हंस पड़े नया परिमल बिखरा कर,
हर उपवन के तरु तरु को मधुमास नया दो |
नया सृजन कर सके धरा आकाश नया दो |

आभारी हो धारा गगन के वरदानो की,
यह नभ के प्रभु है युग युग से चाह तुम्हारी |  
जग सत्ता स्वीकार कर सके शीश झुकाकर,
हर प्राणी के अंतस में विश्वास नया दो |
नया सृजन कर सके धरा आकाश नया दो |  

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