Sunday, July 16, 2017

मलय का झोंका आने दो

बंद करो मत द्वार मलय का झोंका आने दो

यों तो हर ऋतु को मधुमास नहीं कहते
हर उत्सव के  हर पल को उल्हास नहीं कहते

राह वही है राही तो बस चलते हैं
नयनो में सतरंगे सपने पलते हैं

इनके सपनो को कुछ तो शीतल हो जाने दो
बंद करो मत द्वार मलय का झोंका आने दो

बड़ी घुटन होती है बंद झरोखों से
आँखे पनियाती हैं चारो कोनो से

रोम रोम से बस अवसाद झलकता है
मन का कोना कोना खाली लगता है

इस खालीपन को थोड़ा सा भर जाने दो
बंद करो मत द्वार मलय का झोंका आने दो  

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