Tuesday, August 27, 2019

कैसे मानू माटी का इंसान है

कैसे मानू  माटी का इंसान है

ममता प्यार दुलार स्नेह की प्रतिमा बनकर
जिसने जीवन भर जल जल कर स्नेह लुटाया
जिसने यौवन की मस्ती ले जीवन मरू में
स्नेह सुधा का मधुरस हंस हंस कर बिखराया

आंसू पी कर जिसके अधरों पर मुस्काई
सदा रुपहली चांदी सी  मुस्कान है
कैसे मानू  माटी का इंसान है

उषा चांदनी और मेघ ने तो युग युग से
ऊपर की प्रभुता का ही गुणगान सुनाया
नभ के तारो ने भी तो खुलकर लुक छुप कर
नील गगन की गरिमा पर ही था यह गाया

मेरी गरिमा के नीचे ही तो नर पलता
मेरी गरिमा ही उसका वरदान है
कैसे मानू  माटी का इंसान है

यह सुन नव नव किसलय में वसुधा मुस्काई
फूलो ने भी हंस हंस निज परिमल बिखराया
और कृषक के हरे खेत की तरुणाई ने
हिलमिल कर स्वर ताल सहित यह था दोहराया

नभ के प्रभु तो नर के बंदी हैं माटी में
माटी का इंसान नहीं भगवान् है
कैसे मानू  माटी का इंसान है



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