यात्रा पर निकले थे बंधु
अब घर वापस जाना होगा |
राख धूल मिटटी में भी देखा जीवन की गति रहती है
सूरज के उजियारे से अंधियारे की सहमति रहती है
साथ नहीं देता जब कोई चरण स्वयं बढ़ते जाते हैं
हम हर पल हर क्षण में अपने जीबन को गढ़ते जाते हैं
तमस तपन सबसे निकले तब कुछ उजास तो पाना होगा
अब घर वापस जाना होगा |
यात्रा का वृत्रांत कठिन है सरल नहीं सब कुछ सह जाना
झाड़ और झंखाड़ों में भी हंसकर ही सब कुछ सह जाना
कडुआ मीठा गरल और मधु सब मिल जल कर साथ चले हैं
कह न सके हम तो आजीवन स्नेहिल लौ के साथ जले हैं
सहन शक्ति की सतत परीक्षा देकर मन बहलाना होगा
अब घर वापस जाना होगा |
यात्रा का अंतिम पड़ाव है अब क्या कहना अब क्या सुनना
भूली बिसरी कुछ सुधियो को केवल अंतर्मन में गुनना
लाभ लोभ सबसे मन छूटे गुना घटाना सब रह जाए
बाहर भीतर एक कहानी जो अंधियारे को सह जाए
पाप पुण्य सब यही छोड़ कर नव जीवन को पाना होगा
अब घर वापस जाना होगा
अब घर वापस जाना होगा |
राख धूल मिटटी में भी देखा जीवन की गति रहती है
सूरज के उजियारे से अंधियारे की सहमति रहती है
साथ नहीं देता जब कोई चरण स्वयं बढ़ते जाते हैं
हम हर पल हर क्षण में अपने जीबन को गढ़ते जाते हैं
तमस तपन सबसे निकले तब कुछ उजास तो पाना होगा
अब घर वापस जाना होगा |
यात्रा का वृत्रांत कठिन है सरल नहीं सब कुछ सह जाना
झाड़ और झंखाड़ों में भी हंसकर ही सब कुछ सह जाना
कडुआ मीठा गरल और मधु सब मिल जल कर साथ चले हैं
कह न सके हम तो आजीवन स्नेहिल लौ के साथ जले हैं
सहन शक्ति की सतत परीक्षा देकर मन बहलाना होगा
अब घर वापस जाना होगा |
यात्रा का अंतिम पड़ाव है अब क्या कहना अब क्या सुनना
भूली बिसरी कुछ सुधियो को केवल अंतर्मन में गुनना
लाभ लोभ सबसे मन छूटे गुना घटाना सब रह जाए
बाहर भीतर एक कहानी जो अंधियारे को सह जाए
पाप पुण्य सब यही छोड़ कर नव जीवन को पाना होगा
अब घर वापस जाना होगा
behatareen
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