मै अपराजिता
मिट्टी में पानी में, सब में अलंकृता।
हर पल संजोया है
दुखते हुए मन में।
प्रीति कण बोया है,
फिर भी हर क्षण में।
धरती सा धीरज,
इसे तोड़ नहीं पाओगे।
मोह कहो माया कहो
छोड़ नहीं पाओगे।
प्रकृति ने हर पल लिखा है मेरा पता।
मै अपराजिता।
फूलों से सुरभित,
कांटो से घेरी हुयी।
आदि से अंत तक,
मेरी ही फेरी हुयी।
सारा संसार मेरी,
पग ध्वनि पर नाचा है।
गीता रामायण सबने,
मुझे ही तो बांचा है।
सूरज की किरण मै, चांदनी सी सुष्मिता।
मै अपराजिता।
पिछले २ सालों की तरह इस साल भी ब्लॉग बुलेटिन पर रश्मि प्रभा जी प्रस्तुत कर रही है अवलोकन २०१३ !!
ReplyDeleteकई भागो में छपने वाली इस ख़ास बुलेटिन के अंतर्गत आपको सन २०१३ की कुछ चुनिन्दा पोस्टो को दोबारा पढने का मौका मिलेगा !
ब्लॉग बुलेटिन के इस खास संस्करण के अंतर्गत आज की बुलेटिन प्रतिभाओं की कमी नहीं (26) मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !